''गोविन्द कों गायन में बसिबौ ही भावै है''

'शब्दम्' स्थापना दिवस की संध्या, 'ब्रजभाषा पद गायन' से सुगंधित हुई। 17 नवम्बर 2004 की ब्रज क्षेत्र के चयनित, गायक कलाकारों द्वारा प्रस्तुत इस ब्रज सांस्कृतिक कार्यक्रम का शुभारम्भ कत्थक शैली में 'गणेश वन्दना' से हुआ।
''....आओ नन्द नन्दना.....'', ''हे गोविन्द, हे गोपाल'' के पदों की भावपूर्ण प्रस्तुति श्रीमती प्रेरणा तलेगाँवकर ने की। फिर बारी आई श्री जगदीश जी की, जिन्होंने मीरा के पद गाये। पं. किशनलाल जी ने सुमधुर ब्रज गायकी में रहस्यवादी दार्शनिक रसिया - 'कैसे पिया की अटारी चढ्यौ जाये... नसैनी बिना' प्रस्तुत कर वातावरण को गम्भीर आध्यात्मिक रस से सराबोर कर दिया।

Songs of govindब्रजभाषा के कुशल चितेरे कवि श्री राधागोविन्द पाठक ने स्वर तालमयी अपनी रचना ''मोहे लाग बिरज प्यारौ - प्यारौ है, कहूँ राधा कहूँ कृष्णा'', का पाठ कर श्रोताओं को भाव विभोर कर दिया।
देश-विदेश में, ख्यातिप्राप्त हवेली संगीत गायक श्री हरिबाबू कौशिक ने पावन मधुर ''छीत स्वामी'' के पदों का गायन किया। ''आगे गाय, पांछें गाय, इत गाय, उत गाय'' की गायिकी ने जैसे सचमुच गोपाल कृष्ण की स्मृति को साकार कर दिया। फिर गाया

'....काहू जोगिया की नजर लगी.....'।
सुमधुर गायिका श्रीमती शोभा माथुर ने नारायण स्वामी के पदों के गायन से वातावरण को ब्रज भाव से ओतप्रोत कर दिया।
ब्रजभाषा पद गायन समारोह का समापन परम्परा अनुसार '.....भरोसौ दृढ़ इन चरणन केरो' पद के समाज गायन से हुआ, जिसमें समस्त गायक-वादक कलाकारों ने भाग लिया।

श्री हरिबाबू कौशिक द्वारा गाया गया ''छीत स्वामी'' का पद :-

''आगें गाय, पांछें गाय,
इत गाय, उत गाय,
गोविन्द को गायन में बसिवौ ही भावै है।
गायन सौं ब्रज छायौ
बैकुंठ को बिसरायौ
गायन के हेत
गिर कर लैं उठायौ।
''छीत स्वामी'' गिरधारी
विट्ठलश वपुधारी
ग्वारिया कौ बेस धर
गायन में आवै।
आगें गाये पांछें गाय....''

श्री राधागोविन्द पाठक द्वारा प्रस्तुत काव्य रचना का एक अंश:

मोहि लागै बिरज प्यारौ-प्यारौ है।
कहुँ राधा... कहुँ कृष्णा... कहुँ जमुना कौ जुगल किनारौ है...
मोहि लागै बिरज प्यारौ-प्यारौ है।

भई चाँदनी सयानी, चीर चोरन की ठानी।
ब्यार शीतल, सुगंध मंद चाली।
फूल फूलन के हार, गूँथे आपु ही सम्हार,
कहूँ पाँय पलोटें बनमाली।
कहुँ श्यामा संग कृष्णा,
ग्वाल-ग्वालिन ने आरतौ उतारौ है।
लागै बिरज प्यारौ-प्यारौ है।

पं. किशनलाल जी द्वारा गाया ब्रज लोकगीत :-

''नसैनी बिना भाएली, कैसे पिया की अटारी चढ़या जायै
काम-क्रोध-मद-लोभ मोह के पहरे दिये लगाय
कर्म जेठ पौरी में सोवै आड़ी खाट बिछाय।
नसैनी बिना.......................

तृष्णा सौत बहुत दुख दै रही ममता रही सताय
अहंकार देवरिया मेरौ वासों पेस न खाय।
नसैनी बिना........................

माया-सासू बहुत सतावै लज्जा रही सताय
ईर्ष्या ननद को म्हौड़ौं टेड्यौ मोपै सह्यौ न जाय।
नसैनी बिना......................

धर्म की बल्ली, कर्म के डन्डा मैं ने दिये लगाय
प्रीतम पट को पल्लौ पकड़ कें खटाखट चढ़ जाय।
नसैनी बिना.........................''

Braj anchalik Braj anchalik

shabdam hindi prose poetry dance and art

previous topic next article