गंगा उदास है

शब्दम् द्वारा सांस्कृतिक-साहित्यिक पहचान वाले प्रदेश के प्रमुख स्थानों पर विभिन्न कार्यक्रम आयोजित करने का क्रम जारी है। इस क्रम में गंगा दशहरा के पौराणिक संदर्भों के परिप्रेक्ष्य में 3 जून 2006 को इलाहाबाद में हिन्दुस्तानी एकेडमी के संयुक्त तत्वाधान में एक विशिष्ट कार्यक्रम का आयोजन किया। 'गंगा उदास है' शीर्षक से हुए इस कार्यक्रम में संस्कृति और साहित्य ने अपनी दृष्टि से गंगा की पीड़ाओं को प्रस्तुत किया।

कार्यक्रम के प्रारम्भ में गंगा के पौराणिक स्वरूप, गंगा का लोक मंगल रूप, गंगा के प्रति सोच बदलनी होगी, जैसे विषयों पर विद्वानों ने अपने विचार रखे। डा. भगवतशरण शुक्ल ने गंगा के पौराणिक संदर्भों पर विस्तृत प्रकाश डालते हुए कहा कि पुराणों में गंगा अवतरण के बारे में अनेक मत दिये हैं लेकिन यह अब तक र्निविवाद सत्य है कि गंगा हमारी संस्कृति का सफल संरक्षण कर रही है। इस विषय को और विस्तार देते हुए श्रीमती रागिनी चतुर्वेदी ने कहा कि देष में नदियों का सम्मान आरम्भ से होता आया है, लेकिन गंगा का सम्मान सर्वोपरि है। उन्होंने कहा कि भूगोल की दृष्टि से गंगा अपने उद्गम से लेकर तीर्थराज प्रयाग के संगम और गंगा सागर तक दिखाई देती है, लेकिन भाव और संकल्प के स्तर पर गंगा लोक मानस में मूल्य और संवेदना की तरह दूर - दूर तक रची बसी है।

प्रो. वीरभद्र मिश्र ने गंगा की वेदना से प्रयागवासियों को जोड़ा। उन्होंने बताया कि ''बनारस से शोधार्थियों की एक टीम प्रतिरात चलती है और वह सुबह तक गंगाजल के नमूने एकत्र करती है, उन नमूनों का बनारस में परीक्षण किया जाता है। उन्होंने कहा कि इससे सम्बन्धित आंकड़ों से पता चलता है कि गंगा लगातार प्रदूषित हो रही है। उन्होंने कहा कि आवश्यकता इस बात की है कि सरकार ऐसा कानून बनाये जिससे कि गंगा में किसी भी प्रकार का कल कारखानों, घरों आदि का अवशिष्ट जल न पहुँचे।''

प्रख्यात संत विष्णु ब्रह्मचारी ने कहा कि गंगा नहीं रही तो भारतीय संस्कृति भी नहीं रहेगी। अवकाश प्राप्त न्यायाधीश प्रो. प्रेमशंकर गुप्त ने कहा कि गंगा योजना के अरबों रूपये व्यय हो गये। सरकार चाहे जितने कानून बना दे, जब तक कार्यपालिका सहयोग नहीं करेगी तब तक सार्थक परिणाम नहीं हासिल होंगे।

इस अवसर पर सांस्कृतिक कार्यक्रम भी हुए। गंगा के तट पर संध्यावंदन की परिकल्पना को साकार करते हुए कलाकारों ने गंगा स्तुति की संगीतमय प्रस्तुति दी। साथ ही गीत, संगीत और नृत्य की विभिन्न प्रस्तुतियों ने उपस्थित श्रोताओं के मन को झंकृत कर दिया।

कवियों ने गंगा के पौराणिक एवं पर्यावरणीय महत्व को अपनी कविताओं में रेखांकित कर यह संदेश दिया कि प्रत्येक व्यक्ति गंगा संरक्षण की भावना को अपने निजी सरोकारों की श्रेणी में लाये। कार्यक्रम में डा. भगवत शरण शुक्ल, रागिनी चतुर्वेदी, रवीन्द्र गुप्ता, यश मालवीय, हरिराम द्विवेदी, कैलाश गौतम, प्रो. वीरभद्र सिंह आदि साहित्यकारों के अलावा मल्लिका चटर्जी, प्रियंका चौहान आदि कलाकारों ने भाग लिया। कार्यक्रम के समापन पर शब्दम् के सचिव श्री सुबोध दुबे ने अपनी संस्था का परिचय और उपलब्धियों की जानकारी देते हुए अभी का आभार प्रकट किया।

'गंगा उदास है' कार्यक्रम में विचार व्यक्त करते श्री कैलाश गौतम प्रो. वीरभद्र मिश्र का माल्यार्पण कर स्वागत करते शब्दम् सचिव डा. सुबोध दुबे
गंगा स्तुति की भावपूर्ण मुद्रा में बालिकाएं

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