हिन्दी गीत और काव्य

गीत, काव्य की शायद सबसे पुरानी विधा है। गीत मनुष्य मात्र की भाषा है। महाकवि निराला ने गीतिका की भूमिका में कहा है - 'गीत - सृष्टि शाश्वत है। समस्त शब्दों का मूल कारण ध्वनिमय ओंकार है। इसी नि:शब्द - संगीत से स्वर-सप्तकों की भी सृष्टि हुई। समस्त विश्व स्वर का पूंजीभूत रूप है।' भगवतशरण उपाध्याय ने गीत की परिभाषा करते हुए लिखा है - 'गीतिकाव्य कविता की वह विधा है, जिसमें स्वानुभूति-प्रेरित भावावेश की आर्द्र और तरल आत्माभिव्यक्ति होती है।' इसी सन्दर्भ में केदार नाथ सिंह कहते हैं - 'गीत कविता का एक अत्यन्त निजी स्वर है ग़ीत सहज, सीधा, अकृत्रिम होता है।'

हिन्दी गीत के विविध रूप -

हिन्दी गीत के विविध रूप हैं, यथा - प्राचीन गीत, आधुनिक गीत, वैयक्तिक गीत, राष्ट्रीय गीत, प्रगतिवादी गीत, नवगीत, प्रचार गीत, लोक शैली के गीत एवं ग़ज़ल गीत।

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